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इस्रायल एक प्रवास – प्रदीर्घ लेकिन यशस्वी! – हिंदी

250.00

“इस्रायल : एक प्रवास – प्रदीर्घ, लेकिन सफल” यह पुस्तक पाठक को इस्रायल इस राष्ट्र के विभिन्न पहलुओं की गहराई से जानकारी दिलाती है। इस्रायल ने आज जागतिक मंच पर महत्त्वपूर्ण स्थान हासिल किया है और इस्रायल भारत के साथ अपनी अनोखी मित्रता बनाये है। जिस किसीको भी इन सारी बातों का विशाल दृष्टिकोण से अध्ययन करना है, उसने तो यह पुस्तक यक़ीनन ही पढ़नी चाहिए। इस पुस्तक की लेखिका ‘शुलमिथ पेणकर-निगरेकर’ ये एक भारतीय-इस्रायली महिला होकर, इन दिनों उनका वास्तव्य तेल अवीव में है। 

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तृतीय महायुद्ध – हिंदी

250.00

तीसरा सह्स्त्रक शुरु होते – होते ही अर्थात ११ सितम्बर २००१ से विश्व का हर एक राष्ट्र अपनी अपनी रक्षा एवं भविष्याकालीन राजनीतिक रवैयों का नये से पुनर्विचार करने लगा। विश्व के अधिकतर प्रमुख राष्ट्रों को आतंकवादी चेहेरे की अच्छी खासी पहचान ईससे पूर्व ही हो चुकी थी। अमरिका एवं रशिया ने तो आतंकवादी संगठनों को प्रोत्साहित कर एक दुसरे के खिलाफ़ ऊनका ईस्तेमाल भी किया था।

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मैंने देखे हुए बापू – हिंदी

250.00

सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू एक हरफनमौला एवं विशेष पहलुओं से परिपूर्ण अद्वितीय व्यक्तित्व हैं! इस असाधारण व्यक्तित्व का अवलोकन करने के प्रयास के रूप में, ’दैनिक प्रत्यक्ष’ के सन २०१२ एवं २०१३ के ’नववर्ष विशेषांक’ ’मैंने जाना हुआ बापू’ इस विषय पर आधारित थे। बापूजी के शालेय जीवन से लेकर वैद्यकीय प्रैक्टिस के दौर में कई लोग उनके सान्निध्य में आए। ऐसे, बापूजी के सान्निध्य में आए हुए कई लोगों की, अनिरुद्धजी के विभिन्न पहलुओं को दर्शानेवाली, उस दौर की उनकी यादें शब्दांकित की गई थीं। इसके अलावा कुछ गिनेचुने व्यक्तित्वों की, नजदीकी दौर की यादों का भी उनमें समावेश किया गया था। बापूजी के अनोखे व्यक्तित्व पर रोशनी डालनेवाले ’दैनिक प्रत्यक्ष’ के वे दोनों अंक अविस्मरणीय साबित हुए थे।

इन सारे लेखों का संकलन किया हुआ ’मैंने जाना हुआ बापू’ नामक पुस्तक सन २०१७ में गुरुपूर्णिमा के शुभ दिन प्रथम मराठी एवं हिन्दी इन दो भाषाओं में प्रकाशित की गई। इसके बाद बहुत जल्द अंग्रेजी में भी यह पुस्तक प्रकाशित किया गया।

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ – हिंदी

275.00

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना सन 1925 में हुई। डॉ. केशव बळीराम हेडगेवार ने नब्बे वर्ष पहले बोये हुए बीज का रूपान्तरण अब एक विशाल वटवृक्ष में हो चुका है। इस वटवृक्ष की शाखाएँ कितनीं, पत्ते कितने इसकी गिनती करना मुश्किल है। लेकिन यह संगठन भारतीय जनमानस में बहुत ही दृढ़तापूर्वक अपनी जड़ें फ़ैलाकर समर्थ रूप में खड़ा है और वटवृक्ष की ही गति एवं शैली में विकास कर रहा है। केवल देश में ही नहीं, बल्कि जहाँ कहीं भी भारतीय हैं, उन सभी देशों में संघ कार्यरत है ही। इतना ही नहीं, बल्कि विदेशस्थित भारतीयों को अपने देश के साथ, संस्कृति के साथ दृढ़तापूर्वक जोड़कर रखनेवाला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यह मात्र एक संगठन नहीं, बल्कि परंपरा बन चुका है।